डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत कैसे बनेगा: सरकार के सामने रणनीतिक आर्थिक चुनौती

Tue 23-Dec-2025,01:39 AM IST +05:30

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डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत कैसे बनेगा: सरकार के सामने रणनीतिक आर्थिक चुनौती
  • रुपये की मजबूती निर्यात, निवेश, महंगाई नियंत्रण और आयात निर्भरता घटाने से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है।

  • विदेशी निवेशकों का भरोसा और नीतिगत स्थिरता डॉलर के मुकाबले रुपये की दिशा तय करती है।

  • सरकार और RBI की साझा रणनीति के बिना रुपये को दीर्घकालिक मजबूती मिलना मुश्किल है।

Maharashtra / Nagpur :

नागपुर/ डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति केवल विदेशी मुद्रा बाजार का आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह भारत की समग्र आर्थिक ताकत, नीति-निर्माण और वैश्विक छवि का प्रतिबिंब है। जब रुपया कमजोर होता है, तो इसका सीधा असर आम लोगों की जिंदगी पर पड़ता है। आयात महंगा होता है, पेट्रोल-डीजल से लेकर खाद्य तेल तक के दाम बढ़ते हैं और विदेशी कर्ज चुकाने का बोझ भी बढ़ जाता है। ऐसे में यह सवाल बेहद अहम हो जाता है कि भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को क्या कदम उठाने होंगे ताकि रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत हो सके।

सबसे पहला और अहम कदम है निर्यात को तेज़ी से बढ़ाना। किसी भी देश की मुद्रा तब मजबूत होती है, जब वहां विदेशी मुद्रा की आवक ज्यादा होती है। भारत के मामले में इसका मतलब है कि उसे वैश्विक बाजार में ज्यादा सामान और सेवाएं बेचनी होंगी। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना, तकनीक आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना और छोटे व मध्यम उद्योगों को निर्यात से जोड़ना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। जब निर्यात बढ़ेगा, तो डॉलर देश में आएगा और रुपये की मांग मजबूत होगी।

दूसरा बड़ा मुद्दा आयात निर्भरता का है। भारत आज भी ऊर्जा, कच्चे तेल, गैस और उच्च तकनीक उत्पादों के लिए विदेशी बाजारों पर निर्भर है। ज्यादा आयात का सीधा मतलब है डॉलर की ज्यादा मांग, जिससे रुपया दबाव में आता है। सरकार को ऊर्जा आत्मनिर्भरता, नवीकरणीय ऊर्जा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर आयात पर निर्भरता घटानी होगी। साथ ही, गैर-जरूरी और लग्ज़री आयात पर नियंत्रण भी रुपये की सेहत के लिए जरूरी है।

तीसरा महत्वपूर्ण पहलू है विदेशी निवेशकों का भरोसा। विदेशी संस्थागत निवेशक जब भारत में निवेश करते हैं, तो वे अपने साथ डॉलर लाते हैं। लेकिन यदि उन्हें नीतिगत अस्थिरता, टैक्स नियमों में अचानक बदलाव या कारोबारी अनिश्चितता दिखती है, तो वे पैसा निकालने में देर नहीं करते। सरकार को दीर्घकालिक और स्थिर आर्थिक नीतियों का संकेत देना होगा, ताकि निवेशकों का भरोसा बना रहे और डॉलर की आवक स्थिर बनी रहे।

महंगाई नियंत्रण भी रुपये की मजबूती का एक अहम आधार है। जब देश में महंगाई ज्यादा होती है, तो मुद्रा की क्रय शक्ति घटती है और विदेशी निवेशक सतर्क हो जाते हैं। सरकार को राजकोषीय अनुशासन बनाए रखना होगा, यानी खर्च और आय के बीच संतुलन रखना होगा। वहीं, रिज़र्व बैंक को ब्याज दरों और मौद्रिक नीति के जरिए महंगाई पर नियंत्रण बनाए रखना होगा। कम महंगाई का मतलब है मजबूत और स्थिर रुपया।

चालू खाता घाटा यानी देश की आय और खर्च के बीच का अंतर भी रुपये को प्रभावित करता है। यदि भारत आयात पर ज्यादा और निर्यात पर कम निर्भर रहेगा, तो चालू खाता घाटा बढ़ेगा और रुपया कमजोर होगा। सरकार को निर्यात बढ़ाकर, आयात घटाकर और सेवाओं जैसे आईटी, टूरिज्म और स्टार्टअप सेक्टर से डॉलर कमाकर इस घाटे को सीमित करना होगा।

इसके अलावा, वैश्विक कूटनीति भी रुपये की दिशा तय करने में भूमिका निभाती है। तेल उत्पादक देशों से बेहतर व्यापार समझौते, स्थानीय मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार और डॉलर पर निर्भरता कम करने की रणनीति लंबे समय में रुपये को मजबूती दे सकती है। यह केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक निर्णय भी हैं।

रिज़र्व बैंक की भूमिका अंततः संतुलन बनाए रखने की होती है। RBI विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग कर बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर सकता है, लेकिन वह अकेले रुपये को मजबूत नहीं कर सकता। जब तक सरकार की आर्थिक नीतियां मजबूत नहीं होंगी, तब तक RBI के प्रयास सीमित ही रहेंगे।